जब बुलावा आता हैं तब ही बंदा जाता है - इस बात पर तब यकीन हुआ जब मैं फेर्बेरी मैं माँ वैष्णो देवी के दरसन करने पौहचा गत ३ बरसो से सिर्फ प्लानिंग बन रही थी लेकिन जाना नहीं हो प् रहा था लेकिन इक दिन अचानक ही मेरे मित्र का फ़ोन आता हैं की "माता के दरसन करने चलोगे " हमने भी हाँ कह देय हर बार ही तरह उसने कहा रेसेर्वतिओं करवा लो , हम ने करवा लिया कुछ दिनों बाद बो दिनांक आगये जब हुको जाना था | कोई तयारी नहीं थी कपडे तक दुले नहीं थे बैग उठाया और चल देये | विपिन से कहा की कम से कम ठण्ड से बचने के लिये कुछ तोह रक् लो , लेकिन आदत से मजबूर मैनें बात को ताल देय , मेरे दोस्त अमिरुध ने अपना कम्बल दे देया और कहा रक्ले रस्ते मैं काम आएगा | to be cont.................
Система Рябко в двух словах, боевое искусство
7 years ago
No comments:
Post a Comment